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श्रीराम मंदिर, अयोध्या - Shri Ram Mandir, Ayodhya
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The Incredible Story of Lord Ram

रामायण : राजा दशरथ के चारों पुत्र का गुरुकुल को प्रस्थान

रामायण : Episode 2

राजा दशरथ के चारों पुत्र का गुरुकुल को प्रस्थान

समय के साथ राजा दशरथ के चारों पुत्र बड़े होते है। तीनों रानियाँ कौशल्या, कैकेयी और सुमित्रा अपने-अपने पुत्र के साथ आनन्दपूर्वक रहती हैं। राम, भरत, लक्ष्मण और शत्रुघ्न सामान्य बच्चों की भाँति अपना बाल्यकाल खेलकूद में व्यतीत करते हैं। किन्तु जीवन में शिक्षा का सर्वाधिक महत्त्व है, इसलिये चारों भाइयों का भी शिक्षा लेने का समय आता है। ज्ञान की देवी सरस्वती के अवतरण पर्व बसंत पंचमी पर उन्हें महर्षि वशिष्ठ के गुरुकुल में शिक्षा के लिए भेजने का निश्चय राजा दशरथ करते हैं। वे अपनी रानियों और पुत्रों से चर्चा करते हैं। राजा दशरथ अपने चारों पुत्रों को गुरुकुल की शिक्षा का महत्त्व बताते हैं। जीवन में शिक्षा क्यों आवश्यक है, सनातन परम्परानुसार ब्रह्मचर्य का महत्व क्या है और ब्रह्मचारी को किन-किन नियमों का पालन करना है। राजा दशरथ पुत्रों को समझाते हैं कि उन्हें गुरुकुल में रहकर गुरु की कैसे सेवा करनी है और उनके बनाये नियमों का किस प्रकार आदर करना चाहिये। वे अपने पुत्रों को यह भी बताते हैं कि गुरुकुल में सब एक सामान होते हैं, अतएव उन्हें वहाँ राजपुत्र होने का गर्व नहीं आना चाहिये। राजा दशरथ अपने पुत्रों से कहते हैं कि उन्हें गुरुकुल में रहकर वेद, वेदांत, स्मृति, उपनिषद, खगोल, गणित, संगीत और राजनीति सबकी शिक्षा ग्रहण करनी है। महर्षि वशिष्ठ राजा दशरथ, उनकी तीनों रानियों और साधु संतों की उपस्थिति में चारों राजकुमारों का ब्राह्मण परम्परानुसार उपनयन संस्कार कराते हैं। महर्षि वशिष्ठ चारों राजकुमारों को गुरु और शिष्य परम्परा का महत्त्व बताते है और जीवन में माता-पिता और आचार्य का क्या स्थान है, इससे परिचित कराते हैं। मुण्डन उपरान्त चारों राजकुमार अपनी माताओं और पिता से भिक्षा लेते है और गुरु वशिष्ठ संग गुरुकुल को जाते हैं। गुरुकुल में महर्षि वशिष्ठ अपने शिष्यों को पंच तत्वों जल, अग्नि ,आकाश, पृथ्वी तथा वायु के गुण की व्याख्या देते हैं, जिनसे मनुष्य का शरीर बनता है। मनुष्य के शरीर पर उसके खान-पान और आचार-विचार का किस प्रकार प्रभाव पड़ता है, इसका ज्ञान राजकुमारों की प्रारम्भिक शिक्षा में दिया जाता है। महर्षि वशिष्ठ अपने शिष्यों को यह बताते हैं कि अपने शिष्य के प्रति गुरु के भी कुछ कर्तव्य होते हैं और उसे अपने शिष्य को इस योग्य बनाना होता है कि जीवन में कोई भी कठिनाई आये तो वो उसका सामना कर सके। समय बीतने के साथ अयोध्या नरेश के चारों पुत्र गुरुकुल के वातावरण को आत्मसात कर लेते हैं और गुरूकुल की श्रेष्ठ परम्पराओं व नियमों का पालन करते है।

रामायण के प्रसिद्ध पात्र

Ravana - रावण

रावण, हिंदू पौराणिक कथाओं में एक प्रमुख पात्र है और भारतीय साहित्य और संस्कृति का महत्वपूर्ण अंग है। वह महाभारत काल से पहले के युग में राज करने वाले लंका के राजा थे। रावण एक महान विद्वान, ब्राह्मण, महर्षि, विशेषज्ञ योद्धा और शैलीशील राजा थे। वह राजा दशरथ के विरुद्ध भी लड़े और उनके पुत्र रामचंद्र को पराजित करने का प्रयास किया। रावण को माना जाता है कि उन्होंने दशरथ की पत्नी कौशल्या की प्रतीक्षा में अयोध्या में पहुंचने वाली विमला को अपहरण किया था, जिसके बाद उन्होंने उसे अपनी विरासती भारती रानी के रूप में शापित किया।

रावण की विशेषताएं उनके अस्त्र-शस्त्र विज्ञान में अद्वितीय थीं। उन्हें अस्त्र-शस्त्र और तंत्र-मंत्र की गहरी ज्ञान थी और उनकी ताकत को देखकर लोग उन्हें मानवीय शक्ति से भी प्रभावित होते थे। रावण के दस सिर थे, जिनमें हर एक का अपना विशेष महत्व था। इन सिरो में से एक सिर को ही उनकी अवधि यानी उम्र प्रतिनिधित्व करता था। इसके अलावा, रावण को अजेय बनाने के लिए उन्होंने अपने शरीर को अभिजीत करने के लिए विशेष तपस्या की थी।

रावण को एक अद्वितीय कवच भी प्राप्त था, जिसकी रक्षा उन्हें अजेय बनाती थी। वह ब्रह्मा के वरदान से प्राप्त हुआ था और उन्हें मौनी सिद्धि भी प्राप्त थी, जिससे उन्हें अस्त्रों की शक्ति इच्छानुसार प्रयोग करने की अनुमति मिलती थी।

रावण के शक्तिशाली पुत्र मेघनाद भी थे, जिन्होंने उनके समर्थन में कई युद्ध किए थे। मेघनाद को वारुण देवता ने अजेयता दी थी और उन्हें अपराजित बना दिया था। रावण के इस पुत्र की सहायता से रावण ने बहुत सारे युद्ध जीते और ब्रह्मा और इंद्र जैसे देवताओं को भी पराजित किया।

रावण को विशेष रूप से उनके तेज, यश और धन के कारण यहां तक कि सूर्य, चंद्रमा और अग्नि भी उनके समर्थन में रहते थे। उन्हें दया, करुणा और धर्म की अच्छी जानकारी थी, लेकिन उनका गर्व और अहंकार उन्हें अन्यायपूर्ण और अत्याचारी बना दिया।

रावण एक विशालकाय राक्षस राजा थे, जो सुंदर और प्रभावशाली राजमहल में बसते थे। उनकी ताकत, साहस और समर्पण उन्हें वीरता के प्रतीक बनाते थे। रावण का रंग काला था और उनके नेत्र लाल थे। उनके मुख पर विशेष तरीके से राजसी और आदर्शवादी मुद्रा थी।

रावण के चरित्र में विभिन्न रंग हैं। उन्हें अपराधी, अहंकारी, अत्याचारी और अधर्मी के रूप में भी जाना जाता है। हालांकि, उनका प्रेम पत्नी मंदोदरी के प्रति गहरा और सच्चा था। वे एक बुद्धिमान और न्यायप्रिय व्यक्ति भी थे, जो विश्वास को महत्व देते थे।

रावण के चरित्र का अध्ययन एक गहरा और महत्वपूर्ण विषय है, क्योंकि उनकी कथा और उनके विभिन्न पहलुओं में संघर्ष और पराजय की कथा है। वे एक उदाहरण हैं जो अधर्म के मार्ग पर चलने के परिणामस्वरूप अपनी स्वयं की नष्टि को देखते हैं। उनकी गरिमा और पात्रता के साथ उनके पापों की सीमाओं का अनुभव करने वाले लोग भी थे।

रावण एक रोचक पात्र है जिसके चरित्र में समय के साथ विकास हुआ है। वे सत्ता, शक्ति और दम्भ के प्रतीक हैं, लेकिन उनकी अहंकारी और न्यायवादी स्वभाव ने उन्हें अवरोधित कर दिया। रावण का चरित्र अध्यात्मिक और मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से अध्ययन किया जा सकता है, जो हमें दिखा सकता है कि अधर्म के मार्ग पर चलने के परिणामस्वरूप न्याय और सत्य की पराजय कैसे होती है।



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|| सिया राम जय राम जय जय राम ||

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2024 में होगी भव्य प्राण प्रतिष्ठा

श्री राम जन्मभूमि मंदिर के प्रथम तल का निर्माण दिसंबर 2023 तक पूरा किया जाना था. अब मंदिर ट्रस्ट ने साफ किया है कि उन्होंने अब इसके लिए जो समय सीमा तय की है वह दो माह पहले यानि अक्टूबर 2023 की है, जिससे जनवरी 2024 में मकर संक्रांति के बाद सूर्य के उत्तरायण होते ही भव्य और दिव्य मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा की जा सके.

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रामायण कालीन चित्रकारी होगी

राम मंदिर की खूबसूरती की बात करे तो खंभों पर शानदार नक्काशी तो होगी ही. इसके साथ ही मंदिर के चारों तरफ परकोटे में भी रामायण कालीन चित्रकारी होगी और मंदिर की फर्श पर भी कालीननुमा बेहतरीन चित्रकारी होगी. इस पर भी काम चल रहा है. चित्रकारी पूरी होने लके बाद, नक्काशी के बाद फर्श के पत्थरों को रामजन्मभूमि परिसर स्थित निर्माण स्थल तक लाया जाएगा.

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अयोध्या से नेपाल के जनकपुर के बीच ट्रेन

भारतीय रेलवे अयोध्या और नेपाल के बीच जनकपुर तीर्थस्थलों को जोड़ने वाले मार्ग पर अगले महीने ‘भारत गौरव पर्यटक ट्रेन’ चलाएगा. रेलवे ने बयान जारी करते हुए बताया, " श्री राम जानकी यात्रा अयोध्या से जनकपुर के बीच 17 फरवरी को दिल्ली से शुरू होगी. यात्रा के दौरान अयोध्या, सीतामढ़ी और प्रयागराज में ट्रेन के ठहराव के दौरान इन स्थलों की यात्रा होगी.