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श्रीराम मंदिर, अयोध्या - Shri Ram Mandir, Ayodhya
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The Incredible Story of Lord Ram

रामायण : सुग्रीव रावण का मल्ल युद्ध। रावण द्वारा युद्धकाल की घोषणा।

रामायण : Episode 55

सुग्रीव रावण का मल्ल युद्ध। रावण द्वारा युद्धकाल की घोषणा।

विभीषण एक उँचे स्थान से राम लक्ष्मण और सुग्रीव को सोने की लंका का अवलोकन कराते हैं। विभीषण कहते हैं कि हनुमान द्वारा जलायी गयी लंका का रावण ने भगवान विश्वकर्मा और अपने ससुर मयदानव की सहायता से पुनर्निर्माण कर लिया है। विभीषण लंका की दुर्ग संरचना का भेद देते हैं कि इसके पूर्वी द्वार की सुरक्षा रावण के द्वितीय पुत्र प्रहस्त के हाथों है तो पश्चिमी द्वार को युवराज मेघनाद ने सम्भाला हुआ है। इन्द्र पर विजय पाने के कारण रावण ने उसे इन्द्रजीत की उपाधि दी है। दक्षिण द्वार के निकट भूगर्भ में रावण का अक्षय शस्त्र भण्डार है जिसपर निरन्तर पहरा रहता है। उत्तर द्वार के गोपुरम से रावण स्वयं लंका की हर गतिविधि पर नजर रखता है। विभीषण राम को यह जानकारी दे रहे होते हैं तभी रावण गोपुरम पर दिखायी पड़ता है। राम व रावण की दृष्टि आपस में टकराती हैं। सुग्रीव रावण को देखकर अपना आपा खो देते हैं और छलांग लगाकर गोपुरम पहुँच जाते हैं। रावण और सुग्रीव में मल्लयुद्ध होता है। सुग्रीव रावण पर भारी पड़ता है। रावण बचने के लिये माया का सहारा लेता है और ऐसा दिशा भ्रम पैदा करता है कि सुग्रीव समझ नहीं पाते कि रावण किधर खड़ा है। अन्त में रावण छलपूर्वक प्रहार कर सुग्रीव को भागने पर विवश कर देता है। रावण सुग्रीव मल्लयुद्ध की सूचना पाकर मन्दोदरी चिन्तित होती है। वह रावण को समझाने के लिये अपने पिता मयदानव से मिलती हैं। रावण राज्य में युद्धकाल की घोषणा करता है। मेघनाद दुर्ग से बाहर निकलकर शत्रुदल पर आक्रमण करने के पक्ष में है लेकिन रावण निर्णय लेता है कि उसकी सारी सेना परकोटे के भीतर रहे ताकि शत्रुदल लंका के सुदृढ़ परकोटों को तोड़ने के प्रयास में थककर चूर हो जाये और फिर उसपर आक्रमण करके आसानी से हराया जा सकता है। रावण मेघनाद को सर्वोच्च सेनापति नियुक्त करता है। विभीषण अपने गुप्तचरों से प्राप्त रावण की दुर्गबन्दी का भेद राम को देते हुए बताते हैं कि उसने दक्षिण द्वार को जानबूझकर कर कमजोर रखा है ताकि आप उसपर आक्रमण करें और तभी मेघनाद पश्चिमी द्वार खोलकर पीछे से आप पर धावा बोल दे। ऐसे में राम निर्णय लेते हैं कि उनकी सेना हर द्वार पर एक साथ धावा बोलेगी ताकि रावण का कोई भी सेनापति अपने द्वार को छोड़कर दूसरे की मदद को न जा सके। राम अपनी रणनीति तैयार करते हैं। वह अंगद को दक्षिण द्वार, हनुमान को पश्चिम द्वार और नील को पूर्वी द्वार पर आक्रमण करने की जिम्मेदारी देते हैं। उत्तरी द्वार पर जहाँ रावण मौजूद रहता है, वहाँ राम लक्ष्मण के साथ स्वयं आक्रमण करने का जिम्मा उठाते हैं। राम सुग्रीव, जामवन्त और विभीषण को सेना के मध्य भाग में रहने का निर्देश देते हैं ताकि वे चारों तरफ चौकसी बरत सकें और सैन्य आवश्यकताओं को पूरा कर सकें। अगली सूर्योदय आक्रमण करना तय होता है।

रामायण के प्रसिद्ध पात्र

Sage Vasishta - मुनि वसिष्ठ

मुनि वसिष्ठ रामायण महाकाव्य में एक महत्वपूर्ण व्यक्ति हैं। वह एक प्रमुख ऋषि हैं और वाल्मीकि द्वारा लिखित रामायण के कथानक में महाराज दशरथ के परिवार के गुरु बने हुए हैं। मुनि वसिष्ठ एक पूर्वज ब्रह्मा जी के मनस्पुत्र और सृष्टि के पिता हैं। वे ब्रह्मा जी के आदेश पर आकाशगंगा से उत्पन्न हुए थे।

मुनि वसिष्ठ एक अत्यंत ज्ञानी और साधु ऋषि हैं। उन्होंने अनेकों शिष्यों को ज्ञान और आध्यात्मिकता की शिक्षा दी है। वे शान्तिपूर्ण, धर्मात्मा, और न्यायप्रिय हैं। मुनि वसिष्ठ का आदर्श जीवन और आचरण उन्हें एक प्रमुख आचार्य बनाता है। उन्होंने सत्य, धर्म, और न्याय के मार्ग पर चलने का उदाहरण प्रस्तुत किया है।

मुनि वसिष्ठ का शरीर और मन शुद्ध और पवित्र है। वे संतानों के सच्चे पिता के रूप में माने जाते हैं। उनकी महानता और तपस्या ने उन्हें देवर्षि के रूप में प्रस्तुत किया है। मुनि वसिष्ठ को दिव्य दृष्टि है और वे भूत, भविष्य और वर्तमान की ज्ञानी हैं।

मुनि वसिष्ठ ने महाराज दशरथ को धर्म का अच्छा पालन करने की सलाह दी और उन्हें वेदों का ज्ञान दिया। वे राजा के मन्त्री हैं और राजनीतिक मामलों में महाराज की सलाह देते हैं। उनके अद्वितीय बुद्धि और न्यायप्रिय मतों के कारण उन्हें राजा और प्रजा का आदर्श आचार्य माना जाता है।

मुनि वसिष्ठ के आध्यात्मिक शिष्यों में से एक थे राजा हरिष्चंद्र और उन्होंने उन्हें आध्यात्मिक ज्ञान का उपदेश दिया। मुनि वसिष्ठ का ज्ञान और अनुभव उन्हें आध्यात्मिक और लोकाचार सम्प्रदाय का समझदार और अच्छा नेतृत्व करने में मदद करता है।

मुनि वसिष्ठ एक परम ऋषि होने के साथ-साथ एक श्रेष्ठ गुरु भी हैं। उनके पास अद्वितीय ज्ञान, आध्यात्मिक शक्ति और तत्त्वज्ञान की अमूल्य धारा है। मुनि वसिष्ठ ने श्री राम को शास्त्रों का ज्ञान और सत्य के मार्ग पर चलने का उपदेश दिया था। उनकी आध्यात्मिक शिक्षा ने श्री राम को धार्मिक और मानवीय मूल्यों का समझने में मदद की।

मुनि वसिष्ठ ने अपने जीवन में अनेक यज्ञ और तप किए हैं। उन्होंने देवताओं के लिए हवन और पूजा की विधि का ज्ञान प्राप्त किया है। वे तपस्या और आध्यात्मिक साधना में प्रवीण थे और इसलिए देवर्षि के रूप में अत्यधिक प्रशंसा प्राप्त करते हैं।

मुनि वसिष्ठ एक अत्यंत गर्वित और विनम्र व्यक्ति हैं। उनके प्रति लोगों का सम्मान और आदर्शन अपार है। उनका विचारधारा और उपदेश लोगों के जीवन को सकारात्मक रूप से प्रभावित करते हैं। उनका प्रतिष्ठान पूरे ऋषि समुदाय में उच्च है और उन्हें आदर्श ऋषि का दर्जा प्राप्त है।

यथार्थ में, मुनि वसिष्ठ एक प्रतिष्ठित और प्रभावशाली व्यक्ति हैं। उनकी सच्ची भक्ति, न्यायप्रिय मतभेद और आध्यात्मिक शक्ति उन्हें अद्वितीय बनाती हैं। उनका चरित्र और आचरण लोगों के मन, विचार और जीवन को प्रभावित करता है।

यहां तक कि आज भी, मुनि वसिष्ठ का चरित्र और जीवन लोगों के द्वारा मान्यता प्राप्त करते हैं और उन्हें एक महान आध्यात्मिक गुरु के रूप में स्मरण किया जाता है। उनका योगदान रामायण की कथा में महत्वपूर्ण है और उन्होंने श्री राम को आध्यात्मिक और धार्मिक राजनीति का ज्ञान दिया है।

समर्पित ऋषि और आचार्य के रूप में, मुनि वसिष्ठ ने लोगों को धार्मिकता, सत्य, न्याय और आध्यात्मिकता के मार्ग पर प्रेरित किया है। उनकी गहन ज्ञान और आध्यात्मिक अनुभव से लोगों को मोक्ष की प्राप्ति का ज्ञान मिला है। वे एक महान व्यक्ति हैं जिनका योगदान रामायण के कथानक को आध्यात्मिक और धार्मिक रूप में संपूर्ण करता है।



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|| सिया राम जय राम जय जय राम ||

News Feed

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2024 में होगी भव्य प्राण प्रतिष्ठा

श्री राम जन्मभूमि मंदिर के प्रथम तल का निर्माण दिसंबर 2023 तक पूरा किया जाना था. अब मंदिर ट्रस्ट ने साफ किया है कि उन्होंने अब इसके लिए जो समय सीमा तय की है वह दो माह पहले यानि अक्टूबर 2023 की है, जिससे जनवरी 2024 में मकर संक्रांति के बाद सूर्य के उत्तरायण होते ही भव्य और दिव्य मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा की जा सके.

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रामायण कालीन चित्रकारी होगी

राम मंदिर की खूबसूरती की बात करे तो खंभों पर शानदार नक्काशी तो होगी ही. इसके साथ ही मंदिर के चारों तरफ परकोटे में भी रामायण कालीन चित्रकारी होगी और मंदिर की फर्श पर भी कालीननुमा बेहतरीन चित्रकारी होगी. इस पर भी काम चल रहा है. चित्रकारी पूरी होने लके बाद, नक्काशी के बाद फर्श के पत्थरों को रामजन्मभूमि परिसर स्थित निर्माण स्थल तक लाया जाएगा.

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अयोध्या से नेपाल के जनकपुर के बीच ट्रेन

भारतीय रेलवे अयोध्या और नेपाल के बीच जनकपुर तीर्थस्थलों को जोड़ने वाले मार्ग पर अगले महीने ‘भारत गौरव पर्यटक ट्रेन’ चलाएगा. रेलवे ने बयान जारी करते हुए बताया, " श्री राम जानकी यात्रा अयोध्या से जनकपुर के बीच 17 फरवरी को दिल्ली से शुरू होगी. यात्रा के दौरान अयोध्या, सीतामढ़ी और प्रयागराज में ट्रेन के ठहराव के दौरान इन स्थलों की यात्रा होगी.