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श्रीराम मंदिर, अयोध्या - Shri Ram Mandir, Ayodhya
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The Incredible Story of Lord Ram

रामायण : राम भरत मिलाप। राम का राज्याभिषेक।

रामायण : Episode 78

राम भरत मिलाप। राम का राज्याभिषेक।

भरत बड़े भैया राम की चरण पादुकाएं लेकर नन्दीग्राम की कुटिया से बाहर निकलते हैं। राम का पुष्पक विमान नगर सीमा पर उतरता है। जननी जन्म भूमि स्वर्ग से महान होती है, कहते हुए राम अपनी धरती माँ की वन्दना करते हैं। राम गुरुदेव वशिष्ठ के चरण स्पर्श करते हैं। वशिष्ठ बताते हैं कि उन्होंने आदिकाल में ब्रह्मा के कहने पर सूर्यकुल का पुरोहित बनने से इनकार कर दिया था, तब ब्रह्मा ने कहा था कि इसी कुल में भगवान का अवतार होगा। तब से वे नारायण के दर्शन के अभिलाषी थे। तीनों माताओं में राम सबसे पहले माता कैकेयी के चरण स्पर्श करते हैं और बालसुलभ अन्दाज में पूछते हैं कि माँ, उनके लिये राजभोग बनाकर रखा है न। माता सुमित्रा से कहते हैं कि देख लो, बड़ी माँ को दिया अपना वचन पूरा करते हुए लक्ष्मण को साथ लाया हूँ। मर्यादा पुरुषोत्तम अन्त में अपनी जननी कौशल्या से मिलते हैं। राम अपनी माता से कहते हैं कि उन्होंने हर विपत्ति के समय माता को अपने निकट खड़ा पाया। उनकी रगों में माता के दूध की शक्ति थी जिसके बल पर वे हर विपत्ति को पार कर माँ के चरणों में वापस आ सके। कौशल्या कहती हैं कि संसार उन्हें भगवान का अवतार कह रहा है लेकिन वह उन्हें अपने पुत्र के रूप में ही निहारना चाहती हैं। कौशल्या राम को भरत के पास यह कहकर भेजती है कि उसने तुमसे अधिक कठिन वनवास काटा है। भरत राम के चरणों में गिरकर उन्हें उनकी खड़ाऊ पहनाते हैं। राम भरत को उठाकर गले लगाते हैं। सीता भी तीनों माताओें का आशीर्वाद लेती हैं। माता कौशल्या सीता का हाल पूछती हैं तो वह कहती हैं कि जब त्रिजटा उनपर हाथ फेरती थी तो उस क्षण मुझे उनमें आपकी छवि दिखायी पड़ती थी। उर्मिला, माण्डवी और श्रुतकीर्ति भी अपनी बड़ी बहन सीता के गले मिलकर रोती हैं। माँ का हृदय पुत्र के लिये कितना तड़पता है। कौशल्या लक्ष्मण से मिलकर सबसे पहले यह पूछती हैं कि उसे मेघनाद की बर्छी कहाँ लगी थी। लक्ष्मण माता कैकेयी और अपनी जननी माता सुमित्रा के चरण स्पर्श करते हैं। सुमित्रा कहती हैं कि जब भी संसार में भ्रात प्रेम की बात होगी, लक्ष्मण का उदाहरण दिया जायेगा। महर्षि वशिष्ठ कहते हैं कि वनवास का समय पूरा हो चुका है सरयू में स्नान करने के उपरान्त राम, लक्ष्मण, भरत अपनी जटाएं खुलवा कर राजसी वेश में राजमहल में जाएं। अभिनंदन गीत के बीच राम व सीता राजमहल में प्रवेश करते हैं। थाल में राजमुकुट लिये भरत उनके पीछे चल रहे हैं। राम अपने ससुर राजा जनक को प्रणाम करते हैं। सुहागिनें सिर पर मंगल कलश लिये हुए हैं। ऋषि मुनि वैदिक मंत्रोच्चार कर रहे हैं। राम व सीता राजसिंहासन पर बैठने के पूर्व गुरु वशिष्ठ के चरण स्पर्श कर आशीर्वाद लेते हैं। गुरुदेव पवित्र नदियों के जल से राम का अभिषेक करते हैं। उन्हें राजतिलक लगाते हैं। उधर महर्षि अगस्त्य अपनी मानसिक शक्ति से पूरा दृश्य दूर आश्रम में बैठ कर भी देखते हैं। देवलोक में भगवान ब्रह्मा, भगवान शिव तथा समस्त देवी देवता भी इस पल के साक्षी बनते हैं। राम दरबार का दृश्य अनूठा है। छोटे भाई लक्ष्मण और शत्रुघ्न चँवर झुला रहे हैं। भरत हाथ के थाल में राजमुकुट लिये खड़े हैं। गुरु वशिष्ठ राम को राजमुकुट पहनाते हैं। सीता महारानी का मुकुट धारण करती हैं। तीनों लोकों में राजा रामचन्द्र की जय जयकार गूँजती है। चित्रपट पर गोस्वामी तुलसीदास ‘‘हरि अनन्त, हरि कथा अनन्ता’’ गाते दिखायी पड़ते हैं। निर्देशक रामानन्द सागर कहते हैं कि रामायण किसी एक देश या सम्प्रदाय का धर्मग्रन्थ नहीं है बल्कि समस्त मानव जाति का है। इति शुभम्।।

रामायण के प्रसिद्ध पात्र

Ravana - रावण

रावण, हिंदू पौराणिक कथाओं में एक प्रमुख पात्र है और भारतीय साहित्य और संस्कृति का महत्वपूर्ण अंग है। वह महाभारत काल से पहले के युग में राज करने वाले लंका के राजा थे। रावण एक महान विद्वान, ब्राह्मण, महर्षि, विशेषज्ञ योद्धा और शैलीशील राजा थे। वह राजा दशरथ के विरुद्ध भी लड़े और उनके पुत्र रामचंद्र को पराजित करने का प्रयास किया। रावण को माना जाता है कि उन्होंने दशरथ की पत्नी कौशल्या की प्रतीक्षा में अयोध्या में पहुंचने वाली विमला को अपहरण किया था, जिसके बाद उन्होंने उसे अपनी विरासती भारती रानी के रूप में शापित किया।

रावण की विशेषताएं उनके अस्त्र-शस्त्र विज्ञान में अद्वितीय थीं। उन्हें अस्त्र-शस्त्र और तंत्र-मंत्र की गहरी ज्ञान थी और उनकी ताकत को देखकर लोग उन्हें मानवीय शक्ति से भी प्रभावित होते थे। रावण के दस सिर थे, जिनमें हर एक का अपना विशेष महत्व था। इन सिरो में से एक सिर को ही उनकी अवधि यानी उम्र प्रतिनिधित्व करता था। इसके अलावा, रावण को अजेय बनाने के लिए उन्होंने अपने शरीर को अभिजीत करने के लिए विशेष तपस्या की थी।

रावण को एक अद्वितीय कवच भी प्राप्त था, जिसकी रक्षा उन्हें अजेय बनाती थी। वह ब्रह्मा के वरदान से प्राप्त हुआ था और उन्हें मौनी सिद्धि भी प्राप्त थी, जिससे उन्हें अस्त्रों की शक्ति इच्छानुसार प्रयोग करने की अनुमति मिलती थी।

रावण के शक्तिशाली पुत्र मेघनाद भी थे, जिन्होंने उनके समर्थन में कई युद्ध किए थे। मेघनाद को वारुण देवता ने अजेयता दी थी और उन्हें अपराजित बना दिया था। रावण के इस पुत्र की सहायता से रावण ने बहुत सारे युद्ध जीते और ब्रह्मा और इंद्र जैसे देवताओं को भी पराजित किया।

रावण को विशेष रूप से उनके तेज, यश और धन के कारण यहां तक कि सूर्य, चंद्रमा और अग्नि भी उनके समर्थन में रहते थे। उन्हें दया, करुणा और धर्म की अच्छी जानकारी थी, लेकिन उनका गर्व और अहंकार उन्हें अन्यायपूर्ण और अत्याचारी बना दिया।

रावण एक विशालकाय राक्षस राजा थे, जो सुंदर और प्रभावशाली राजमहल में बसते थे। उनकी ताकत, साहस और समर्पण उन्हें वीरता के प्रतीक बनाते थे। रावण का रंग काला था और उनके नेत्र लाल थे। उनके मुख पर विशेष तरीके से राजसी और आदर्शवादी मुद्रा थी।

रावण के चरित्र में विभिन्न रंग हैं। उन्हें अपराधी, अहंकारी, अत्याचारी और अधर्मी के रूप में भी जाना जाता है। हालांकि, उनका प्रेम पत्नी मंदोदरी के प्रति गहरा और सच्चा था। वे एक बुद्धिमान और न्यायप्रिय व्यक्ति भी थे, जो विश्वास को महत्व देते थे।

रावण के चरित्र का अध्ययन एक गहरा और महत्वपूर्ण विषय है, क्योंकि उनकी कथा और उनके विभिन्न पहलुओं में संघर्ष और पराजय की कथा है। वे एक उदाहरण हैं जो अधर्म के मार्ग पर चलने के परिणामस्वरूप अपनी स्वयं की नष्टि को देखते हैं। उनकी गरिमा और पात्रता के साथ उनके पापों की सीमाओं का अनुभव करने वाले लोग भी थे।

रावण एक रोचक पात्र है जिसके चरित्र में समय के साथ विकास हुआ है। वे सत्ता, शक्ति और दम्भ के प्रतीक हैं, लेकिन उनकी अहंकारी और न्यायवादी स्वभाव ने उन्हें अवरोधित कर दिया। रावण का चरित्र अध्यात्मिक और मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से अध्ययन किया जा सकता है, जो हमें दिखा सकता है कि अधर्म के मार्ग पर चलने के परिणामस्वरूप न्याय और सत्य की पराजय कैसे होती है।



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|| सिया राम जय राम जय जय राम ||

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2024 में होगी भव्य प्राण प्रतिष्ठा

श्री राम जन्मभूमि मंदिर के प्रथम तल का निर्माण दिसंबर 2023 तक पूरा किया जाना था. अब मंदिर ट्रस्ट ने साफ किया है कि उन्होंने अब इसके लिए जो समय सीमा तय की है वह दो माह पहले यानि अक्टूबर 2023 की है, जिससे जनवरी 2024 में मकर संक्रांति के बाद सूर्य के उत्तरायण होते ही भव्य और दिव्य मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा की जा सके.

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रामायण कालीन चित्रकारी होगी

राम मंदिर की खूबसूरती की बात करे तो खंभों पर शानदार नक्काशी तो होगी ही. इसके साथ ही मंदिर के चारों तरफ परकोटे में भी रामायण कालीन चित्रकारी होगी और मंदिर की फर्श पर भी कालीननुमा बेहतरीन चित्रकारी होगी. इस पर भी काम चल रहा है. चित्रकारी पूरी होने लके बाद, नक्काशी के बाद फर्श के पत्थरों को रामजन्मभूमि परिसर स्थित निर्माण स्थल तक लाया जाएगा.

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अयोध्या से नेपाल के जनकपुर के बीच ट्रेन

भारतीय रेलवे अयोध्या और नेपाल के बीच जनकपुर तीर्थस्थलों को जोड़ने वाले मार्ग पर अगले महीने ‘भारत गौरव पर्यटक ट्रेन’ चलाएगा. रेलवे ने बयान जारी करते हुए बताया, " श्री राम जानकी यात्रा अयोध्या से जनकपुर के बीच 17 फरवरी को दिल्ली से शुरू होगी. यात्रा के दौरान अयोध्या, सीतामढ़ी और प्रयागराज में ट्रेन के ठहराव के दौरान इन स्थलों की यात्रा होगी.